बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने फिर से पलटी मारने की अटकलों पर रविवार को एक तरह से विराम लगा दिया है। पिछले कुछ हफ्तों से उनके एक बार फिर से आरजेडी के साथ जाने की कयासबाजियां चल रही थीं। इसे आरजेडी सुप्रीमो ने उनके लिए ‘दरवाजा खुला’ है, कहकर और हवा दे दिया था। लेकिन, अब नीतीश ने खुद ही कह दिया है कि ‘हम तो गलती से दो बार उनके (लालू) साथ चले गए थे, अब पुराने साथी के साथ हैं।’
बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार इन दिनों प्रगति यात्रा पर निकले हुए हैं। इस साल के आखिर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों के लिए उनकी यह यात्रा बहुत अहम है। इसी दौरान उन्होंने यह साफ कर दिया है कि वह दो बार लालू यादव के साथ जा चुके हैं और अब इधर-उधर जाने वाले नहीं हैं। नीतीश ने इस राजनीतिक मुद्दे पर अपनी चुप्पी क्यों तोड़ी है, इसकी संभावित 5 वजहों पर हम यहां चर्चा कर रहे हैं।
नीतीश कुमार ने बिहार के मुजफ्फरपुर में पत्रकारों के साथ बातचीत में कुछ स्थानीय महिलाओं की मौजूदगी में कहा, “हम तो गलती से दो बार उनके साथ….फिर छोड़ दिया….अब तो हम फिर पुराना साथी में हैं….वो सब कोई काम किया..कोई महिला का….शाम के बाद कोई निकलता था?”
नीतीश कुमार के साथ उस समय में भाजपा के वरिष्ठ नेता और उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा भी मौजूद थे। नीतीश ने जो कुछ कहा,वह आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव पर सीधे तौर पर प्रहार है।
क्योंकि, ‘शाम के बाद कोई निकलता था?’कहकर नीतीश ने 2005 से पहले लालू-राबड़ी के शासनकाल में बिहार के बहुत ही खराब कानून व्यवस्था की ओर इशारा किया है, जिसे विरोधी ‘जंगलराज’ कहकर संबोधित करते रहे है। इसी के बाद लालू के बेटे और आरजेडी नेता तेजस्वी ने भी कह दिया कह दिया है कि अब उनके अपने साथ लेने का कोई सवाल ही नहीं है।
मुजफ्फरपुर में नीतीश कुमार ने बिहार सरकार की महिलाओं के लिए चल रहे ‘जीविका’ कार्यक्रम की सदस्यों के बीच यह टिप्पणी की है। बिहार में महिलाएं लालू-रबड़ी शासन के बाद जेडीयू की बहुत बड़ी वोट बैंक बन चुकी हैं और जदयू सुप्रीमो को पता है कि बिहार की आधी आबादी के मन में आज भी 2005 से पहले वाली बिहार की कौन से छवि मौजूद है।
नीतीश कुमार अभी बिहार में जिस एनडीए गठबंधन की अगुवाई कर रहे हैं, वह एक मजबूत सामाजिक समीकरण पर आधारित है। इसका अंदाजा पिछले साल (2024) नवंबर में हुए चार सीटों पर विधानसभा उपचुनाव के परिणामों में भी दिख चुका है, जो सारी की सारी एनडीए के खातों में गई हैं। यानी एनडीए ने महागठबंधन या इंडिया ब्लॉक से तीन सीटें छीन ली हैं।
इससे पहले पिछले साल जून में हुए लोकसभा चुनावों में भी एनडीए ने 40 सीटों में से 30 पर कब्जा किया था। यह चुनाव परिणाम तमाम राजनीतिक पंडितों के अनुमानों के उलट था।
ऐसी स्थिति में नीतीश कुमार को लालू यादव के ऑफर में कोई फायदा नहीं दिखा है। क्योंकि,यहां वे अभी एनडीए के चेहरा हैं और चुनाव परिणाम पर निर्भर है कि वह फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे या फिर कोई और दूसरी भूमिका निभाएंगे। लेकिन, राजद के साथ रहने पर चुनाव जीतने के बाद भी सीएम पद पर दावेदारी लालू के बेटे तेजस्वी यादव की ही रहने वाली है।
नीतीश कुमार पिछले साल उस इंडिया ब्लॉक को छोड़कर एनडीए में आए थे, जिसे बनाने में उनकी सबसे बड़ी भूमिका थी। लोकसभा चुनावों से पहले जब सारा विपक्ष इंडिया ब्लॉक में एकजुट होकर बीजेपी के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार था, तब नीतीश ने बिहार की जमीनी राजनीति को भांपकर फिर से भाजपा गठबंधन में शामिल होना फायदा का सौदा समझा।
लोकसभा चुनावों के बाद से तो इंडिया ब्लॉक लगातार बिखराव की ओर बढ़ रहा है। कांग्रेस खुद को इस ब्लॉक का नेता मानती है, लेकिन गठबंधन के सहयोगी उसे भाव देने को तैयार नहीं हो रहे हैं। दिल्ली में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को गठबंधन से निकलवाने तक की धमकी देने लगी है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी चीफ ममता बनर्जी जो अपने राज्य में किसी भी गठबंधन के सहयोगी को तालमेल में एक सीट देने के लिए तैयार नहीं रहतीं, वह अब इसकी कमान अपने हाथ में लेने के लिए उतावली हैं। नीतीश को ऐसे इंडिया ब्लॉक में अपना क्या भविष्य नजर आ रहा होगा,जिसका कथित तौर पर संयोजक नहीं बनाए जाने को लेकर ही उन्होंने एनडीए में वापसी की थी।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद राज्य का सियासी समीकरण तेजी से बदलने लगा है। उपमुख्यमंत्री अजित पवार की एनसीपी और उनके चाचा शरद पवार की एनसीपी (शरदचंद पवार) में फिर से विलय की अटकलें तेज हैं। दूसरी तरफ शरद पवार हाल में किसी बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल आए हैं और उनकी बेटी सुप्रिया सुले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की शान में कसीदे पढ़ने लगी हैं।
इसी तरह से वहां विपक्षी महा विकास अघाड़ी या इंडिया ब्लॉक में शामिल एक और पार्टी शिवसेना (यूबीटी) के सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने सिर्फ हिंदुत्व की विचारधारा की ओर लौटने का संकेत दे रहे हैं, बल्कि भाजपा के साथ गिले-शिकवे दूर करने का सिंग्नल भी देने लगे हैं।
ऐसे में नीतीश को यह भी अंदाजा हो चुका है कि अगर वह पलटी भी मारते हैं, तो भी इससे केंद्र की मोदी सरकार को किसी तरह का खतरा पैदा होने की आशंका तो पहले से ही नहीं है, ऊपर से महाराष्ट्र के बदले सियासी माहौल में उसकी ताकत और ज्यादा बढ़ती नजर आ रही है।
Nitish Kumar: पांचवीं) लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा की मजबूत वापसी
लोकसभा चुनावों के बाद हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव हुए हैं। इसमें हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत अप्रत्याशित ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक है। क्योंकि, हरियाणा में बीजेपी ने न सिर्फ तीसरी बार सरकार बनाई है, बल्कि पहले से ज्यादा बहुमत के साथ सरकार बनाई है।
वहीं महाराष्ट्र में तो लोकसभा चुनावों में बड़ा झटका लगने के बाद भी बीजेपी ने विधानसभा चुनावों में ऐसा जबरदस्त धमाका किया है कि उसने राज्य में जीत के अपने सारे रिकॉर्ड भी तोड़ डाले हैं,और साथ ही साथ अपनी दोनों सहयोगियों एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी का भी चुनावी बेड़ा पार लगवा दिया है।
जम्मू और कश्मीर में भाजपा भले ही सरकार बनाने में सफल नहीं हुई, लेकिन वहां भी पार्टी ने बहुत शानदार प्रदर्शन किया है और कांग्रेस जीतने वाले गठबंधन में शामिल रहकर भी अपनी मिट्टी पलीद होने से नहीं बचा सकी है।
ऐसे में नीतीश कुमार को शायद अपना सियासी भविष्य एनडीए में ही रहने में ज्यादा सुरक्षित नजर आ रहा है, जिसमें उनके लिए आगे चलकर ज्यादा सटीक रिटायरमेंट प्लान भी मिलने की उम्मीद रहेगी, जबकि आरजेडी के साथ जाकर उनके अपने करियर पर विराम लगने की संभावना बहुत ही ज्यादा है।