नीतीश के लिए लालू फिर दिखे एक्टिव, क्या है ये खेल?

बिहार राजनीति
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पटना: बिहार में लगता है कि एनडीए खटपट का शिकार हो गया। नीतीश कुमार भले कहते रहें कि अब वे पुरानी गलती नहीं दोहराएंगे और एनडीए में ही रहेंगे, पर राजनीति में ऐसी सफाई का मोल नहीं होता। भाजपा के प्रदेश स्तरीय नेता उन्हें अगली बार भी सीएम बनाने की बात कहते हैं। लेकिन महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के साथ भाजपा ने जो सलूक किया, वह कुछ अलग ही दर्शाता है। महाराष्ट्र प्रकरण से नीतीश कुमार निश्चित ही चौकन्ने हो गए होंगे।

नीतीश कुमार के कान इसलिए भी खड़े हुए होंगे क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कह दिया कि सीएम का फैसला संसदीय बोर्ड का काम है। महाराष्ट्र में शिंदे के नेतृत्व में हुए विधानसभा चुनाव के बाद ज्यादा सीटें मिलने के कारण भाजपा ने जिस तरह सत्ता अपने हाथ ली, अमित शाह ने उसे उचित ठहरा कर नीतीश के लिए खतरे का संदेश दे दिया है। अब भाजपा लाख सफाई दे, लेकिन तीर तो कमान से निकल चुका है।

भाजपा को भी अब इस बात का एहसास हो रहा होगा कि अमित शाह को अपनी रणनीति का खुलासा नहीं करना चाहिए था। हड़बड़ी में बिहार भाजपा कोर कमेटी की बैठक हुई। राजनीति के जानकार इस बैठक को अमित शाह के बयान पर पानी फेरने का प्रयास मान रहे हैं। कोर कमेटी की बैठक में शामिल होने हरियाणा पहुंचे सम्राट चौधरी ने ताल ठोंक कर कहा कि नीतीश कुमार सीएम थे, सीएम हैं और कल भी रहेंगे, तो इसे लीपापोती का प्रयास ही मानना चाहिए।

नीतीश कुमार की अस्वस्थता की अनधिकृत सूचनाएं, लोगों से तीन दिनों तक न मिलना और महिला संवाद यात्रा का प्लान बदल कर प्रगति यात्रा पर निकलना, यह समझने के लिए पर्याप्त है कि वे नाराज हैं। नाराजगी जाहिर करने का यह उनका पुराना और आजमाया अंदाज है। उनकी राजगीर की यात्रा और खामोश हो जाने का परिणाम लोगों को अब समझने में कोई माथापच्ची नहीं करनी पड़ती। कभी वे पाला बदलने के वक्त ऐसा करते हैं, तो कभी नाराजगी जाहिर करने का यह उनका अंदाज रहा है।

अब सवाल उठता है कि नीतीश कुमार अगर नाराज हैं तो क्या वे फिर पाला बदलेंगे? इस संभावना में सबसे बड़ी रुकावट तेजस्वी यादव का सीएम बनने का सपना है। सीएम बनने की उम्मीद में ही उन्होंने पिछली बार नीतीश कुमार को भाजपा से मुक्त कराने के लिए व्यूह रचना की थी। तेजस्वी के पिता लालू प्रसाद यादव ने सत्ता सुख से वंचित अपने बेटों को नीतीश कुमार के मातहत काम करने को राजी किया। तब आरजेडी की योजना थी कि नीतीश को राष्ट्रीय राजनीति में धकेल कर तेजस्वी के सीएम बनने का मार्ग प्रशस्त किया जाए। नीतीश को जेडीयू के लोग तो पीएम मैटेरियल कहते ही थे, आरजेडी के लोगों ने भी एक सुर से अलाप रागना शुरू कर दिया। पर, कांग्रेस की वजह से बात बिगड़ गई।

तेजस्वी यादव को अपनी मेहनत पर भरोसा रहा है। पिछली बार ही वे दर्जन भर विधायकों की कमी से सीएम नहीं बन पाए थे। इस बार वे चौकन्ना हैं। हर कदम फूंक-फूंक कर बढ़ा रहे हैं। पर, हरियाणा और महाराष्ट्र के नतीजे देख उन्हें भी कामयाबी मिलने में शक हो रहा होगा। राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि लालू यादव, तेजस्वी के भविष्य को देखकर नीतीश को पटाने की चाल चल चुके हैं। लालू भी जानते हैं कि नीतीश का साथ मिलने पर सत्ता मिलनी तय है।

नीतीश कुमार ही सीएम रहें तो बहुत फर्क नहीं पड़ने वाला। कम से कम बेटे तो सत्ता में साझीदार बन जाएंगे। इसलिए लालू ने तेजस्वी को सीएम बनाने का प्लान फिलहाल टाल दिया है। उनकी कोशिश है कि नीतीश कुमार ही सीएम रहें, पर एनडीए से अलग होकर। यानी नीतीश कुमार के मातहत काम करेंगे तेजस्वी। नीतीश कुमार की उम्र और सेहत को देखकर भी लालू समझ रहे हैं कि वे अब तनाव लेने की स्थिति में नहीं हैं। साथ रहने पर कभी न कभी तेजस्वी को सीएम बनने का मौका तो मिल ही जाएगा।

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