पटना: राज्य सरकार के मंत्री और वित्त मंत्री अब 15 करोड़ से लेकर 30 करोड़ रुपये तक योजना स्वीकृत कर सकेंगे। वहीं, विभाग के अपर मुख्य सचिव, प्रधान सचिव और सचिव पांच करोड़ रुपये तक की योजना स्वीकृत कर सकेंगे। सरकार ने विभागीय मंत्रियों के साथ ही वरिष्ठ अधिकारियों की वित्तीय शक्तियों को नए सिरे से विभाजित किया है। इतना ही नहीं, योजनाओं की समीक्षा और स्वीकृति के लिए भी अलग-अलग समिति गठन का प्रस्ताव भी स्वीकृत किया है।
जानकारी के अनुसार, सरकारी महकमों में स्कीमों की स्वीकृति और विभाग के अधिकारी के पास कितनी वित्तीय शक्ति है, इसे लेकर अमूमन सभी विभागों में संशय की स्थिति थी। योजना एवं गैर योजना के विलय के बाद से मंत्री और अधिकारियों को सौंपे गए वित्तीय अधिकार के संबंध में बार-बार दिशा निर्देश देने के बाद भी इसे लेकर संशय बना ही रहता था। नतीजा विभाग बार-बार मार्गदर्शन की मांग करते थे।इस परेशानी को दूर करने और स्थायी रूप से एक व्यवस्था बनाने के लिए सरकार ने कुछ अहम कदम उठाए हैं। एक ओर योजनाओं में होने वाले संशय को दूर करने के लिए सरकार ने नए सिरे से स्कीमों की स्वीकृति के संबंध में मंत्री, वित्त मंत्री और अधिकारियों को शक्तियां प्रत्यायोजित की है।
वहीं, स्कीमों की समीक्षा के लिए अलीग-अलग समितियां भी गठित कर दी है। प्रस्ताव को राज्य मंत्रिमंडल ने भी स्वीकृति दे दी है। सरकार ने जो नई व्यवस्था बनाई है उसके अनुसार विभागों में स्कीमों की समीक्षा के लिए विभागीय स्थायी वित्त समिति होगी। इस समिति की अध्यक्षता विभाग के अपर मुख्य सचिव, प्रधान सचिव के साथ सचिव के पास होगी।
इसके अलावा विभाग के आंतरिक वित्तीय सलाहकार और संबंधित विषय से संबंधित प्रभारी विशेष सचिव, संयुक्त सचिव और उप सचिव स्तर के अधिकारी समिति में सदस्य होंगे।विभागीय वित्त समिति के अलावा, विकास आयुक्त की अध्यक्षता में लोक वित्त समिति भी गठित होगी। एक प्रशासी पदवर्ग समिति भी गठित होगी जिसकी अध्यक्षता राज्य के मुख्य सचिव करेंगे। इसमें विकास आयुक्त के अलावा वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव, प्रधान सचिव और सचिव में से एक सदस्य होंगे। वित्त विभाग के सचिव सदस्य सचिव होंगे।
इन समितियों के स्तर पर अलग-अलग योजना समीक्षा के बाद ही अंतिम रूप से योजना पर मुहर लगेगी। नई व्यवस्था के अनुसार पांच करोड़ रुपये तक की योजना विभागीय स्थायी वित्त समिति की समीक्षा के बाद अपर मुख्य सचिव, या प्रधान सचिव के साथ सचिव के स्तर पर स्वीकृत हो सकेगी।
पांच करोड़ से 15 करोड़ तक की योजना की समीक्षा भी विभागीय स्थायी वित्त समिति करेगी और मंत्री 15 करोड़ रुपये तक की योजना स्वीकृत कर सकेंगे। जबकि 15 से 30 करोड़ तक की योजना विभागीय मंत्री और वित्त मंत्री के स्तर पर स्वीकृत होंगी। तीस करोड़ से अधिक की यदि कोई योजना होती है तो उसकी स्वीकृति मंत्रिमंडल के स्तर पर होगी। इसी प्रकार नए स्वायत्त संगठन की स्थापना के संबंध में भी मंत्रिमंडल का निर्णय आवश्यक होगा।