इस बार बिहार चुनाव की रफ्तार होगी फूल स्पीड पर

बिहार राजनीति
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पटना: नीतीश कुमार पर यह आरोप लगता रहा है कि सत्ता का कमान वो मंत्रियों से ज्यादा राज्य के अधिकारियों के हाथ में रखते रहे हैं। ऐसा कोई एक बार नहीं, बल्कि कई बार मंत्रियों के आरोप से प्रतिलक्षित होते रहा है।

याद कीजिए कभी मंत्री रहे मदन सहनी तो कभी राजस्व और भूमि सुधार मंत्री रहे राम सूरत राय या फिर शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने भी अधिकारियों के विरुद्ध झंडा बुलंद करते कहा कि ये लोग जनप्रतिनिधि की सुनते ही नहीं। अधिकारियों की इस तानाशाही रवैया का इल्ज़ाम अपरोक्ष रूप से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मढ़ते रहे हैं।

लेकिन अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने मंत्रियों की भी सुन ली है। भले चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार ने मंत्रियों की भी भी सुध ली। अब तो बस मंत्रियों की बल्ले-बल्ले हो गई। आइए जानते हैं सीएम नीतीश कुमार मंत्रियों पर किस कदर मेहरबान हुए…

वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अधिकारियों का साथ नहीं छोड़ा। अब इस नए निर्णय के बाद अपर मुख्य सचिव, प्रधान सचिव और सचिव पांच करोड़ रुपये तक की योजना स्वीकृत कर सकेंगे। इसके साथ-साथ योजनाओं की समीक्षा और स्वीकृति के लिए भी अलग-अलग समिति गठन का प्रस्ताव भी स्वीकृत किया है।

दरअसल, योजनाओं की स्वीकृति को लेकर संशय की स्थिति बनी रहती थी। खासकर वित्तीय शक्ति को लेकर हर विभाग में ऊहापोह की स्थिति बनी रहती। अब इस ऊहापोह को समाप्त करने के लिए मंत्री और अधिकारियों को वित्तीय अधिकार को स्पष्ट कर दिया गया, ताकि किसी संशय के कारण योजना के क्रियान्वयन में देर न हो सके।

मंत्री और अधिकारी प्रदत्त शक्ति का उपयोग करेंगे और योजनाओं को पूरा करवाने की दिशा में कदम बढ़ाएंगे। अब इसके बाद मार्गदर्शन पाने के लिए न तो मंत्री और न ही अधिकारी को माथापच्ची करनी पड़ेगी।

इस परेशानी को दूर करने और स्थायी रूप से एक व्यवस्था बनाने के लिए सरकार ने कुछ अहम कदम उठाए हैं। एक ओर योजनाओं में होने वाले संशय को दूर करने के लिए सरकार ने नए सिरे से स्कीमों की स्वीकृति के संबंध में मंत्री, वित्त मंत्री और अधिकारियों को शक्तियां प्रत्यायोजित की है।

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